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                                                        उरांव जनजाति


                      उरांव द्रविड़ प्रजाति की जनजाति है जो द्रविड़ भाषा परिवार संबंधित है. मानव शास्त्री इन्हें पूर्व  द्रविड़ जनजाति से जोड़ते हैं , इस जनजाति का मुख्य निवास स्थान महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र है यहां से इसका विस्तार हड़प्पा सभ्यता क्षेत्र की और हुआ, हरप्पा सभ्यता के विस्तार में उरांव जनजाति का भी योगदान माना जाता है, इसके पश्चात यहां से पलायन होते हुए सोन नदी के किनारे रोहतासगढ़ में इनका आगमन होता है. रोहतासगढ़ बिहार के शाहबाद जिले में स्थित है उरांव जनजाति  इसे अपना ऐतिहासिक स्थल मानते हैं यहां इसका आगमन 500 से 600 से ईसा पूर्व  माना जाता है, जहां इसका सामाजिक राजनीति आर्थिक और संस्कृति जीवन बहुत परिष्कृत और व्यवस्थित रूप से विकसित हुआ. रोहतासगढ़ से पलायन का कारण विभिन्न संस्कृतियों के बीच संघर्ष और विशेषकर मुगल आक्रमण से हार है, यहां से उरांव दो समुदाय में विभाजित होते हैं एक जो गंगा के किनारे होते हुए राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में बस जाते हैं और दूसरा समूह सोन नदी के किनारे होते हुए छोटा नागपुर के उत्तरी-पश्चिम पठार भाग को अपना निवास स्थान  बना लेते हैं, जहां पहले ही असुर मुंडा,कोल एवं अन्य  जनजातियों का स्वामित्व था.
                                      
              

       

             इस जनजाति का मुख्य निवास स्थान छोटा नागपुर पठार है जहां 90% आबादी निवास करती हैं, इसके अलावा यह जनजाति छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, महाराष्ट्र मे भी बसे हुए हैं. उराव जनजाति यहां आ कर छोटे-छोटे गांव बनाएं और खेती आदि में लग गए .यहां जीवन यापन करने का मूलाधार खेती है.
               
                   उरांव बाहरी दुनिया से मेलजोल का महत्व समझते थे. यह लोग सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि  से भी समृद्ध है.उरांव ने अपने ज्ञान रूपी समृद्धि के कारण खेती में नए-नए विकास  की . यह खेती में अन्वेषक के रूप में जाना जाता है यह लोग अन्य समकालीन जनजातियों से संपन्न माना जाता है.
                
                        उरांव जनजाति के लोग खाश नयन-नकस के होते हैं इनका रंग सांवला और औसतन  कद करीब 5 फुट 4 इंच, बाल काले और घुंघराले होते हैं. उरांव स्त्री -पुरुष सूत का  बना वस्त्र पहनते थे. उरांव स्त्री अपने को आभूषणों से सजाना पसंद करते थे, इनके आभूषण कसे ,पीतल ,लकड़ी इत्यादि के बने होते थे. उरांव जनजाति के एक बड़ा त्यौहार है कर्मा, भादो शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाया जाता है. जीवन से मरण तक की सभी संस्कार उरांव जनजाति किसी भी अन्य समाज की तरह क्रमबद्ध रूप से मनाते हैं. उसमें सबसे प्रथम छटी त्योहार यानी बच्चे का नामकरण संस्कार है यह त्यौहार बच्चे के जन्म के सट्टा या आठवें दिन में मनाया जाता है, बच्चे का नाम उनके पूर्वजों के नाम पर रखा जाता है, उरांव  जाति की उन्नति का कारण है शिक्षा,परिणाम स्वरूप उरांव सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में उच्च पदों पर कार्यरत है.
           


  उरांव जनजाति में भारत की अन्य जनजाति की तरह ही विवाह प्रथा पाई जाती है , यहां लड़के वाले लड़की के घर लड़की का हाथ मांगने जाते हैं. दहेज प्रथा बिल्कुल नहीं है. उरांव जनजाति के लोग बड़ी बस्ती बनाकर रहना पसंद नहीं करते. उनके गांव दूर से देख कर बड़ी आसानी से पहचाने जा सकते हैं. इनके मकान त्रिकोणीय शैली छाजन वाले पहाड़ी शैली के होते हैं. और हवादार होते हैं.
उरांव पुराने मुंडा शासन व्यवस्था को ही अपने क्षेत्र में लागू किया. जिसे पड़ाह व्यवस्था के नाम से जाना जाता है. उरांव जनजाति द्वारा खेती के लिए बनाई गई  उपयुक्त भूमि भूइहरि कहलाती थी, तथा इस गांव का मालिक भूइहर कहा जाता था. उरांव में पारंपरिक शासन व्यवस्था के निर्धारण हेतु पहले दीवान होते थे ,जो धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों को देखते हैं, बाद में पहन के सहयोग हेतु महतो का पद बना.  इस तरह  पहान और महतो गांव के अनुभवी लोग के माध्यम से पंच पद्धति द्वारा ग्रामीण व्यवस्था का संचालन करते थे.

उरांव जनजाति में कहावत है-  ''महान गांव बनाता है, महतो गांव चलाता है ''.

पढ़ा शासन व्यवस्था का स्वरूप इस प्रकार होता है -

1.ग्राम स्तर पर   :   उरांव के गांव में  ग्राम पंचायत का गठन किया जाता है और इस ग्राम पंचायत के संचालन हेतु निम्न पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है-  a)महतो  :  भूइहर गांव में धर्मेश के बाद सबसे बड़ी शक्ति का स्रोत ग्राम पंचायत थे जिसका प्रधान महत्त्व कहलाता था या गांव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का रक्षक था इसलिए इसे स्वतंत्र प्रधान कहां गया
b)पहान  : यह  गांव में धार्मिक अनुष्ठान पर्व-त्यौहार, शादी ,विवाह आदि का कार्य करते थे, तथा इसके बदले इन्हें कर मुक्त जमीन दी जाती थी, जिसे पहनाई भूमि कहते थे. यह पद हमेशा किसी शादीशुदा व्यक्ति को ही दिया जाता था.
c)मांझी :     यह महतो की मदद के लिए इनकी नियुक्ति की जाती थी, यह महतो के पंचायती आदेशों को लोगों तक पहुंचाने का कार्य करता था.
d) बैगा   : यह   पहान का सहयोगी है, तथा इसका मुख्य कार्य ग्रामीण देवता की पूजा कर उसे शांत करना है, इसे वैध भी कहा जाता था.

2. बड़ा स्तर पर रांव में कई गांव को मिलाकर एक अंतग्रामीण पंचायत का गठन किया जाता था, जिसे पड़ा पंचायत कहते थे. यह पंचायत दो या दो से अधिक गांव के बीच के विवादों को निपटारा करता था, तथा या पंचायत निम्न मध्य  सर्वोच्च तीनों श्रेणियों में विभाजित था. पहले निम्न पंचायत में किसी भी बात को प्रस्तुत किया जाता है, जहां निर्णय ना हो तो मध्य पंचायत में विवाद को भेज दिया जाता था ,और यहां भी निपटारा ना हो तो सर्वोच्च पंचायत में लोग अपील करते थे. पंचायत की कार्रवाई में पुरुष और महिला दोनों भाग लेते थे.

पड़ाह के मुख्य अधिकारी-
a) पड़ाह राजा :  यह पड़ाह पंचायत का प्रमुख होता है, तथा उन मामलों का निपटारा करता है जो महत्व द्वारा नहीं किया जा सकता या फिर महतो ने उस मामले को पड़ाह राजा के पास हस्तांतरित कर दिया हो.
b)  पड़ाह दीवाना  :  पड़ाह पंचायत में या प्रमुख न्यायिक अधिकारी है जो सुप्रीम कोर्ट की तरह कार्य करता है. यह सभी पड़ाह राजाओं से ऊपर होता है. तथा इनके बीच समन्वय स्थापित करता है जिस मुद्दे पर तरह राजा निर्णय नहीं ले पाते उसे पड़ाह दीवान के पास हस्तांतरित कर दिया जाता था

उरांव की परंपरागत शासन व्यवस्था से जुड़े अधिकारी ने कर लेने का प्रचलन नहीं था प्रशासनिक दायित्व निभाने वाले अधिकारियों को उनके बदले कर मुक्त विशेष भूमि प्रदान की जाती थी.
1. पड़ाह राजा को दी गई भूमि मांझीहस भूमिका कहलाते थे.
2. पहान होती गई भूमि पहनाई भूमि कहलाते थे.
3. महतो को दी गई भूमि महतोइ भूमिका लाते थे.
4. पहान के सहायता हेतु दी गई भूमि पनभर भूमि कहलाती थी.
रांव


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